हमारे बारे में

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दृष्टि

अग्रणी लोगों के दृष्टिकोण

पूरे विश्व में सृजनात्मकता के सहारे विज्ञान केन्‍द्र फलते-फूलते हैं ।  प्रारंभ में राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् के विकास में इसके संस्थापक महान व्यक्तित्वों जैसे श्री अमलेंदु बोस, डॉ सरोज घोष, श्री समर बागची, श्री आर एम चक्रवर्ती इत्यादि ने सोचा कि भारत में विज्ञान केन्द्र आन्दोलन को चिरस्थायी बनाने के लिए राविसंप में सृजनात्मकता की संस्कृति विकसित करनी होगी ।  यद्यपि यह संस्कृति राविसंप की सभी इकाइयों में आत्मसात की गयी थी तथापि उन्हें इस बात की आवश्यकता महसूस हुई कि नवप्रवर्तन के माध्यम से समस्या के समाधान के लिए एक विशेष इकाई का निर्माण किया जाए।  इस इकाई का नाम केन्द्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला दिया गया ।
आज यह देखकर मुझे बड़ी खुशी होती है कि 25 वर्षों के अपने सृजनात्मक अस्तित्व से केन्द्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला ने परिषद की समृद्धि में अथक योगदान दिया है ।  भविष्य की संग्रहालयी प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर, संघर्षशील श्रम शक्ति को प्रशिक्षित कर, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं को ग्रहण कर, महत्वपूर्ण मिशन परियोजनाओं के लिए आधार-संबल के रूप में कार्य करते हुए, जिसका उद्घाटन कोई और नहीं स्वयं भारत के माननीय प्रधान मंत्री करते हैं, केन्द्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला ने बारंबार सिद्ध किया है कि सोना तपकर ही निखरता है ।  मेरी इच्छा है कि यह परिषद् की सृजनात्मक संवाहिका के रूप में कार्य करती रहे और आने वाली पीढ़ी के लिए और अधिक शैक्षिक सुविधाएँ सृजित करे जो भली भाँति अन्वेषित अन्तराफलक प्रौद्योगिकियों तथा सर्वाधिक प्रमाणिक विषय सामग्रियों पर दृढ़ता के साथ स्थापित हों ।
सादर,

सादर,
श्री ए डी चौधरी
महानिदेशक, राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद्

1. संग्रहालयों के भविष्य को उसके वर्तमान स्थिति से विघटित करना आवश्यक है; यह अधिक अनुकूलक्षम, रचनात्मक और लचीला होना चाहिए, ताकि बदलाव के वक्त जीवित रहने और फलने-फूलने योग्य बना रहे । हम एक अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तनों के बीच तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी काल में रह रहे हैं। हमारे समाज के सांस्कृतिक ताने-बाने के हिस्से के रूप में बढ़ती सामाजिक जरूरतें, विनाशकारी महामारी की स्थिति, प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दे और डिजिटल क्रांति ये सभी संग्रहालयों की भूमिका को प्रभावित कर रहे हैं। संग्रहालयों के दशकों के पारंपरिक व्यापार को परिवर्तनों से मुक़ाबला करने और विविधता के प्रति दृष्टिकोण से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी के साथ संवर्धित करने की आवश्यकता है, लेकिन यह सम्मेलित हो, प्रमुख लेकिन व्यक्तिकृत, निर्णयात्मक लेकिन खुले सिरे तक पहुंच वाली हो। केंद्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रयोगशाला (केंअप्रप्र) भविष्य के संग्रहालयों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अग्रसर होने के लिए
खोज, सृजनशीलता, उत्कृष्टता, विविधता, अखंडता और सेवा के प्रति दृढ़ता से प्रेरित है।

2. कोलकाता में केंद्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला (केंअप्रप्र/सीआरटीएल), पेशेवर प्रशिक्षण, अनुसंधान और विकास के लिए राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद का केंद्रीय केंद्र है। केंअप्रप्र प्रदर्शों, दीर्घाओं और संग्रहालयों के विकास से संबंधित अनुसंधान और प्रशिक्षण में लगा हुआ है। केंअप्रप्र, राविसंप की इकाइयों और अन्य विज्ञान केंद्रों/संग्रहालयों से जुड़ी जनशक्ति के कौशल को बढ़ाने के लिए समय-समय पर कार्यशालाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।

3. विज्ञान केंद्र नेटवर्क के बुनियादी ढांचे में प्रचुर वृद्धि और भारत में नए संग्रहालयों के विकास की मांग को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी संवर्धित प्रदर्शों की निरंतर मांग उत्पन्न हुई है और संग्रहालयों में सार्थक संचार और शिक्षण के लिए अवधारणा, डिजाइन और निर्माण में कौशल और विशेषज्ञता के विकास के लिए प्रशिक्षण दिया गया है। इस उद्देश्य के लिए, राविसंप, मुख्यालय की सुविधाओं के एक अंश के रूप में केंद्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला (केंअप्रप्र) को बिधान नगर, कोलकाता में स्थापित किया गया था। इसे 13 मार्च 1993 को भारत के तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था। अपनी स्थापना के बाद से, केंअप्रप्र ने पूर्व निदेशकों के नेतृत्व में आधुनिक तकनीकों, नई प्रदर्शन तकनीकों, आईटी, एआई, एआर-वीआर प्लेटफार्मों के साथ सक्षम विभिन्न विज्ञान संचार पद्धतियों के साथ प्रदर्शों और प्रदर्शनियों के लिए नवीन विकासात्मक कार्य जारी रखा है और 2डी और 3डी इमर्सिव और एक्सपीरियंसिंग प्रदर्शों के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग भी कर रहा है। संवादात्मक खगोल विज्ञान शिक्षा के लिए फुलाने योग्य गुंबद (पोर्टेबल) तारामंडल जैसे शैक्षणिक उत्पाद और चल विज्ञान प्रदर्शनी बस राविसंप की सम्मेलित लक्ष्य को बढ़ावा देने के लिए केंअप्रप्र की प्रमुख पहल हैं।

4. मैं केंअप्रप्र के सभी सेवारत सदस्यों और विभिन्न पदों से केंअप्रप्र की सेवा करके इस संस्थान को अतिरिक्त आयामों से संग्रहालय बनाने में विशिष्ट रूप से सक्षम करने वालों को धन्यवाद देता हूं।

सादर,
श्री नटराज दासगुप्ता
केन्द्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला